मुझे आज भी याद है वो दिन जब बाबा ने कहा कि हमें बंगलोर से कोटा साइकल से निकलना होगा और कोई चारा नहीं है , गाँव मे ज़िंदा तो रहेंगे कम से कम , जब समय सही होगा तब देखा जाएगा फिरसे कि क्या करना है ।
मेरा नाम रोशनी भगत है मेरे बना का नाम राम भगत है ,मै बाबा और मेरी 80 साल कि दादी सब बंगलोर मे रहते थे , हमारी माँ नहीं थी वो गुजर चुकी थी , मेरे बाबा वही पर एक फक्टरी मे काम करते थे और पास के एक झुग्गी मे रहते थे , हमारी झुग्गी मे ज्यादा समान नहीं था ,एक चूल्हा एक बक्सा और नीचे बिछे दो गद्दे के अलावा बड़ी प्रॉपर्टी मे एक साइकल थी बाबा कि पुरानी सी । मैं पास के ही स्कूल मे जाती थी पढ़ने उस समय मई दूसरी कक्षा मे थी , मेरी 2-3 सहेलिया थी जिनमे सना मेरी सबसे अच्छी दोस्त थी , वो मेरे झुग्गी के पास ही रहती थी ।
फिर एक दिन अचानक स्कूल कि छुट्टी कर दी गई बोला गया कि अब स्कूल बंद ही रहेगा , जब बताया जाएगा तब वापस स्कूल आना होगा क्योंकि कोरोंना वाइरस फ़ेल रहा है सबको घर मे रहना है , हम बच्चे तब तो खुश हो गए थे ,क्यूंकी तब हमे पता नहीं था कि हमारे पर क्या दुखों का पहाड़ गिरने वाला है ।
घर आए तो पता चला कि बाबा कि फक्टरी भी बंद हो रही है , कुछ पैसे दे दिये गए थे उन्हे और आने को माना कर दिया गया था ।शुरू मे तो कुछ दिन चल गया लेकिन जब पैसे खतम हो गए तब दिक्कतें शुरू हो गई । लोगों ने बोला कि सरकार खाना देगी पर सरकार के लिए भी ऐसा कर पाना शायद संभव नहीं रहा होगा ।हम किसी दिन खाना पाते किसी दिन नहीं पाते थे ,हम सब्जी तो खा लेते थे लेकिन कुछ रोटिया अगले दिन के लिए बचा लिया करते थे ताकि अगर अगले दिन भोजन न मिले तो दिन का कुछ इंतजाम हो जाए । फिर एक दिन ऐसा भी आया जब बिलकुल खाना नहीं मिला , फिर दूसरे दिन भी नहीं मिला , बाबा बाहर जाते और खाली हाथ आते , मै पूछती कि सरकार ने तो कहा था कि देगी खाना , बाबा बोले सरकार सबको नहीं दे सकती खाना , जहा खाना बाटा जाता है वह बहुत भीड़ थी बेटा मै नहीं ल सका , मुझे माफ कर दो । उसी के बाद बाबा ने तय कर लिया कि वापस जाना है घर ।
पर बाबा ने पता किया कि कोई भी साधन नहीं चल रहे थे कही भी जाने के लिए ,पुलिस लाठी डंडे मार रही थी जो बाहर फालतू दिख जा रहा था , फिर कुछ दिन बाद थोड़ी ढील दी गई तो झुग्गी के कुछ लोग पैदल जाने लगे अपने अपने घर को कुछ साइकल से जाने लगे , तब बाबा ने मन बनाया कि वो भी हम दोनों के साथ साइकल से निकलेंगे । अगले दिन बाबा ने कहा कि ये साइकल पुरानी है नई देखता हूँ किसी की, फिर उन्होने घर का सारा समान और पुरानी साइकल को बेच कर एक नई साइकल किसी कि खरीद ली और फिर हम निकाल पड़े बंगलोर से कोटा जाने को , बाबा ने बाद मे बताया कि उन्हें बहुत दर लग रहा था कि वो ये सफर पूरा कर पाएंगे कि नहीं , बाबा को तो दूरी भी पता नहीं थी और न ही रास्ता मैंने उन्हे कई साल बाद बताया जब मैंने कही पढ़ा , उन्हे बस ये पता था कि कई दिन लगेंगे ।
हमारे पास 500 रूपय थे अगले कई दिन के सफर के लिए । साइकल पर पीछे कैरियर पर बाबा ने एक अच्छा सा कुशन बांध दिया था क्यूंकी उस पर दादी को बैठना था , वैसे दादी ने एक बार बाबा को यह प्रस्ताव दिया कि मुझे यही छोड़ दे मरने के लिए , मुझे कहा ले जा पाएगा पर वो नहीं माने , और मानते भी कैसे । साइकल पर सिर्फ एक खाली झोला और दो पानी के लिए बोतल रखा था और कुछ नहीं बाबा ने मुझे आगे बैठाया और साइकल पर पहला पैडल मारा और हम निकल लिए अपने सफर पर । रास्ते मे जहा जहा हमे कुछ खाने का समान बांटता देखते व्हा हम उसे रख लेते कुछ खा लेते । रात मे हम किसी स्टेशन या हॉस्पिटल के आसपास रुक जाते , रास्ते मे हमे और कई लोग भी दिख जाते जो अपने अपने घरों को जा रहे थे , कुछ ट्रकों पर लदकर , कुछ साइकल से और कुछ पैदल ही जा रहे थे ,कुछ तीन दिन बाद हम बेल्लारी पहुचे और वही पहली बार मुझे भगवान के दर्शन हुये , ये बात भी मैंने उस समय नहीं समझी बाद मे जब समझदार हुई और ये सुना और पढ़ा कि भगवान किसी भी रूप मे आ सकते है ।
हुआ यू कि बेल्लारी शहर को पीछे छोडते हुये हम करीब 20 किमी हाइवे पर जा रहे थे तेज़ गर्मी थी इसी बीच बाबा कि साइकल पंक्चर हो गई , हम सब नीचे उतरे और देखा कि पिछले टायर मे हवा नहीं है , बाबा ने बोला कि इसके बारे मे तो मैंने सोचा ही नहीं था । अब क्या करे अगर साइकल ऐसे ही घसीटते है तो वाल्व भी खराब हो जाएगा और यहा रुक भी नहीं सकते । बाबा को कुछ समझ नहीं आ रहा था ,मै उनको कभी साइकल देखती और एक अध बार दादी को । दादी ने एक बार फिर अपना प्रस्ताव दिया कि मुझे यही छोड़ दो और तुम दोनों निकला जाओ पैदल । मेरा समय हो गया पूरा । इसी बीच एक ट्रक जाता दिखाई दिया हमने हाथ दिखाया पर वो रुका नहीं । ऐसे ही एक घंटा बीत गया बाबा को यह चिंता साता रही थी कि अगर शाम होते अगले शहर या कस्बे तक नहीं पाहुचे तो बड़ी दिक्कत हो सकती है। फिर दूर एक मोटर साइकल तेज़ी से आती दिखी , इससे पहले कि हम उसे हाथ दिखाते उसकी मोटर साइकल धीमे होने लगी , फिर वो हमारे पास आकार रुक गई ….
(कृपया कमेंट करके बताइये कि क्या इसके आगे कि कहानी आप सुनना चाहेंगे)