आज मैं हिन्दी दिवस पर एक बात सोच रहा कि जब हम छोटे थे तो कभी ये पता न चला कि हिन्दी दिवस कब आयी और चली गयी, कभी हमारे स्कूल में हिन्दी दिवस मनाया नहीं गया न सुना कि किसी और दोस्त के स्कूल में मनाया गया। अब जब कुछ साल से जब से हम बड़े हो गये काम धन्धा करने लगे तब से ही ज्यादा सुनने में आ रहा है।  मैने कभी जानने की कोशिश तो नहीं की पर क्या अभी भी हमारे स्कूलो मे हिन्दी मात्र एक विषय है या उससे कुछ ज्यादा, देखने वाली बात होगी। 

हिन्दी भाषी राज्य होने के कारण मेरी बोलचाल की भाषा तो हिन्दी ही रही पर जब अलग से हिन्दी के बारे में सोचते हैं तो हिन्दी में कम आने वाले नंबर ही याद आते हैं,  पता नहीं क्यूँ मुझे हिन्दी मे अंग्रेजी की तुलना में कम अंक आते थे।  मुझे कवितायें,  दोहे, अलंकार ठीक से आते ही नहीं थे, एक बार हिन्दी के जब मासिक परीक्षा मौखिक हुए तो मेरी नानी याद दिला दी मैडम ने। बहुत बेज्जती हुई भाई 30 में सिर्फ 10 अंक मिले। फिर भी हाई स्कूल व इंटरमीडिएट में 60 से ऊपर ही नंबर आये पर अंग्रेजी से कम।

अब जब बड़े हुए तो समझ में आता है कि हिन्दी सिर्फ एक विषय नहीं है यह इतने बड़े देश को जोड़ने वाला सूत्र है, और सबसे विशेष बात यह कि इस सूत्र में अन्य भाषाओं के रूप में बहुमूल्य मोतियों को पिरोया गया है जो इसे अलग व खूबसूरत बनाता है। हिंदी में भारतीय भाषाओं के मिलान के अतिरिक्त फारसी, अरबी,उर्दू व अंग्रेजी के भी कई शब्दों को अपनाया गया है जिससे इसकी खूबसूरती में चार चांद लग गये हैं। मैने कभी पढ़ा था कि संविधान में राजभाषा के रूप में देवनागरी हिंदी के स्थान पर हिन्दुस्तानी हिन्दी को लेने की चर्चा हुई थी ताकि वह ज्यादा लोकप्रिय हो सके, यानि वो हिन्दी जो मिश्रण है सारी भारतीय भाषाओं का।

बचपन में पापा ने हिन्दी में समाचार सुनने की आदत डलवाया सुबह 7:20 पर गोरखपुर के आकाशवाणी केन्द्र से 10 मिनट का समाचार प्रसारित होता था, समाचार तो सुनते ही थे ये भी पता चल जाता था कि स्कूल के लिये तैयार होने में कितना समय बचा है।  फिर एक बार रेडियो में शॉर्टवेव की जगह मीडियमवेव लगाया तो बीबीसी न्यूज चैनल लग गया फिर उसको भी सुनने लगे गये, उस पर शाम 7:30 वाले शाम में विश्व की कुछ प्रसिद्ध कहानियों का हिन्दी रूपांतरण सुनाते थे, उसका एक अलग ही अनुभव रहा, अब ये सब नहीं हो पाता।  चलो कोशिश करता हूं कि शायद फिर से ये सब शुरू कर पाए।

मुझे हिन्दी के वर्तमान दशा की अपेक्षा  उसके इतिहास में ज्यादा रूचि है। जब कुछ साल पहले मैने पढा कि चीन में मान सरोवर झील से निकलकर चीन, भारत व पाकिस्तान से बहते हुए अरब सागर में मिलने वाली सिन्धु नदी से हिन्दू,  हिन्दू व हिन्दुस्तान का नाम मिला तो सोचकर ही विस्मित होने लगा कि देखिये कि वो नदी तो वैसे ही बह रही है वहां लाखों सालों से और हमने कितनी सरहदें कितनी लडाईया कितने कत्ल कर लिये इन्ही नामो की वजह से।

दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे पहले सभ्यता का विकास सिन्धु नदी के किनारे हुआ, अरब से व्यापार होता था इन लोगों का। अरबों ने सिन्धु नदी के आसपास व  उसके पार के इलाके को सिन्धु के नाम से ही संबोधित करने लगे पर वो उच्चारण में स नही बोल पाते हैं तो स के स्थान पर ह बोलने के कारण हिन्दू (hindu)बोलने लगे इसी से यहां बोली जाने वाली भाषा हिंदी कहलाई, जब ग्रीक लोग हमारी सभ्यता के संपर्क में आये तो वो H गायब कर गये व INDI शब्द का उच्चारण करने लगे,  कालांतर में अंग्रेजों ने India नाम का आविष्कार किया।पर गौर करने वाली बात ये कि एक नदी जो हिमालय से अरब सागर तक का सफर करती है उसे ये पता ही नहीं कि उसका क्या योगदान है। हिन्दुस्तान ही नहीं वेस्टइंडीज, इन्डोनेशिया, इंडियन ओसन का भी नामकरण में उसका ही योगदान है।। 

वैसे हिन्दी के प्रचार प्रसार में बालीवुड व टेलीविजन को योगदान अतुलनीय है,  हिन्दी फिल्में व हिन्दी गानें विदेशी लोगों में काफी लोकप्रिय है। जो ठीक से हिंदी जानते भी नहीं है बडे़ मजे से इनका आनंद लेते हैं।  खेल की दुनिया में कमेन्टरी के लिये अब हिन्दी चैनल ही बना दिये गये हैं। 

हिंदी भाषा मीठी, व्यवहारिक व सरल तो है पर जब अंग्रेजी से भिड़ती  है तो कहीं पिछड़ने सी लगती है,  पढाई व नौकरी के मामले में अंग्रेजी बाजी मार ले जाती है,  सिर्फ हिन्दी जानने वाले लोग पिछड़ जाते हैं।  अंग्रेजी में बात करने वालों के सामने लोग सकपका जाते हैं जवाब देते नहीं बनता, मन में ही लोग अनुवाद करने लगते हैं फिर भी जवाब नहीं दे पाते सिर्फ यस राईट करते रहते हैं। इसका कारण हमारे समाज की उस सोच से है जो सीरत के ऊपर सूरत को रखता है,  ग्यान से ऊपर प्रस्तुति को रखता है।  लोग कितनी भी बातें कर ले पक इस सोच को बदले बिना हिन्दी की प्रतिष्ठा का दायरा ऊपर नहीं उठ पायेगा।

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