दिल्ली मुगल वंश के अंतिम 200 वर्षो मे लाल किला ही मुगलों का मुख्य अवास रहा.. उसके बाद अंग्रेजी हुकूमत के पास ये भारत की अज़ादी के समय तक रहा. आज भी इसको उसी रूप मे देखा जाता है हर वर्ष 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री यही लाल किला के लाहोरी गेट से ध्वजा, अरोहण करते हैं तथा राष्ट्र को संबोधित करते हैं.
पिछले दिनो लाल किला घूमने का प्लान बन गया.लाल किला मेट्रो स्टेशन बिल्कुल सटे ही है. पैदल ही हम टिकट काउंटर तक गए. समान्य दिन होने के बावजूद लाइन मे मुझे 15 मिनट लग गए. पीक सीजन या जादा छुट्टी वाले वीकेंड मे भीड़ जादा होती होगी. ऑनलाइन टिकट लेने का प्रयास किया जा सकता है. दो तरह के टिकट मिलते हैं, 50 रु मे सिर्फ समारकों को जबकि 80 रु मे समारकों के साथ ही म्यूज़ियम भी देख सकते हैं.
अंदर खाने पीने का सामान नही मिलता है,लाहोरी गेट से अंदर जाना होता है, अंदर जाने पर एक चौड़ी गलेरीनुमा बाज़ार है जहा पर हाथ से बने सामान मुर्तिया, शाल चूड़ी आदि मिलते है
इस बाज़ार के ऊपर जब आप देखेंगे तो बड़ी ही खूबसूरत छत् दिखाई पड़ती है..
इससे आगे बढ़ने पर दीवान ए आम यानी जहा सम्राट आम लोगो से मिलते थे..
अंदर के प्रांगण मे कई तरह के महल हैं पर ये सारे महल छोटे छोटे संरचना हैं बस.. अंदर मोती मस्जिद भी है..
सबसे पीछे की तरफ दीवाने खास है जहा सम्राट अपने मंत्रियों व अन्य संभ्रांत लोगो के साथ बैठते थे. इस संरचना की छत्त की कलाकारी देखने लायक है. कहते है इसमे सोने जड़े थे जिसे अंग्रेज़ों ने निकाल लिया.
लाल किले मे जल व्यवस्था अत्यधिक आकर्षक व मनमोहक रही होगी अभी तो सिर्फ संरचना ही रह गई है उस समय खूबसूरती के साथ साथ वातानुकूलन का भी कार्य इससे होता था..
पूरे किले के अंदर कोई विशाल या विहंगम इमारत या संरचना नही दिखती जैसा कि भारत के अन्य कई किलों मे दिखता है, एक बात मुझे समझ में नहीं आयी कि मुगल सम्राट इस किले के किस हिस्से मे रहते थे मुझे ऐसा लगता था कि लाल किले की बड़ी और बेहद मजबूत दीवारों के पीछे एक अलीशान संरचना होगी पर ऐसा ना था.. ये भी संभव हो सकता है कि वो हिस्सा किसी अलग तरफ हो जो मुझसे छूट गया हो.
वेसे शुरू में मिले बाज़ार वाले हिस्से मे भी अवास हो सकता है अगर आपमे से किसी को इस सम्बंध में कोई जानकारी हो तो मुझे जरूर बताए..